हमारा देश एक विकाशशील देश है , देश के विकास , और जनता की सेवा का ज्यादातर दायित्व हमारी भारत सरकार , राज्य सरकार व् स्थानीय निकाय वहन करती है , इन सभी के लिए वर्ष के शुरुआत में 1 फरवरी को आने वाले वर्ष के लिए खर्चो और उसकी पूर्ति का बजट संसद में पेश किया जाता है , इस बजट में प्रस्तावित खर्चो की पूर्ति के लिए नए वर्ष के लिए कर का निर्धारण किया जाता है।
तो इस तरह करो में हर वर्ष कुछ न कुछ संसोधन होते रहते है , परन्तु उसका मूल ढांचा एक सा रहता है , आइये हम देखते है की भारत वर्ष में कर प्रणाली का ढांचा कैसा है और यह कैसे कार्य करता है।
भारत में कर के प्रकार
भारत में दो प्रकार के कर प्रणाली लागु है -
1 - प्रत्यक्ष कर प्रणाली ( Direct Tax )
ये कर प्रत्यक्ष या सीधे तौर से व्यक्ति या संस्था के आय अथवा अर्जित लाभ पर लगाया जाता है। इसके नियमन के लिए भारत सरकार ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ( CBDT ) का गठन किया है , इसके अंतर्गत आने वाले कर है - आयकर , कार्पोरेट कर , पूंजीगत लाभ कर , प्रतिभूति लेन देन कर और संपत्ति कर ।
2 - अप्रत्यक्ष कर ( Indirect Tax )
ये वे कर हैं जो वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाते हैं। इनका बोझ अंततः उपभोक्ता पर डाला जाता है। ये कर निर्माता या खुदरा विक्रेता द्वारा एकत्र किए जाते हैं और सरकार को भुगतान किए जाते हैं। जैसे - जीएसटी , वैट , उत्त्पाद शुल्क , सीमा शुल्क , संपत्ति कर , पेशेवर कर , स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क।
आइये , इन सब के बारे में एक एक कर के जानते है -
आयकर ( INCOME TAX )
यह कर भारत सरकार के आय का प्रमुख श्रोत है , यह भारत के नागरिको की आय या अर्जित लाभ पर सीधे लगता है , अर्थार्थ आयकर वह कर है जो केंद्र सरकार द्वारा व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा एक वित्तीय वर्ष (financial year) में अर्जित की गई आय या लाभ पर लगाया जाता है। हाँ , सभी नागरिको को इसको देने की जरुरत नहीं होती है , एक निश्चित आय सीमा से अधिक आमदनी होने पर ही आप के ऊपर आयकर लागु होता है , उसमे भी सरकार आपको कई रियायत भी देती है , उन रियायतों को शामिल करने के पश्चात यदि आप पर कोई कर की देयता आती है तो आपको उस कर को सरकार को अदा करना पड़ता है , आइये देखते है की आयकर की सीमा क्या है , और आयकर किसके ऊपर लागू होता है , और कितना अदा करना पड़ता है।
आयकर किस प्रकार के आय पर लगाया जाता है
आयकर निम्न प्रकार के आय पर लगाया जाता है - वेतन से आय , गृह संपत्ति से आय , व्यापार या पेशे से आय , पूंजीगत लाभ जैसे संपत्ति या शेयर की बिक्री और अन्य आय जैसे बैंक ब्याज , लॉटरी से आय , लाभांश इत्यादि।
आयकर की दर
जैसा की ऊपर बताया गया है की आयकर की दर हर वर्ष परिवर्तित होती रहती है , वर्तमान में आयकर की दो स्लैब चल रहा है , नया टैक्स स्लैब और ओल्ड टैक्स स्लैब।
| क्रमांक | वित्त वर्ष 2025-26 के लिए नई आयकर स्लैब | वित्त वर्ष 2025-26 के लिए नई आयकर दर |
|---|---|---|
| 1 | 4,00,000 रुपये तक | शून्य |
| 2 | 4 लाख से 8 लाख तक | 5% |
| 3 | 8 लाख से 12 लाख तक | 10% |
| 4 | 12 लाख से 16 लाख तक | 15% |
| 5 | 16 लाख से 20 लाख तक | 20% |
| 6 | 20 लाख से 24 लाख तक | 25% |
| 7 | 24 लाख से ऊपर | 30% |
कृपया यहाँ अगली सीरीज पर रु 1 /-, जोड़ कर पढ़े , जैसे 4 लाख से 8 लाख तक का स्लैब वास्तव में 4 लाख एक रुपये से शुरू होगा , इसी तरह और सभी स्लैब एक रुपये जोड़ने के बाद शुरू होंगे।
इस नए टैक्स व्यवस्था में आयकर छूट को रु 25,000 से बढ़ा कर रु 60,000 कर दिया गया , जिससे कि इस छूट के साथ , जिसकी आय रु 12 लाख तक की है , उन सभी व्यकितयों को इसके अंतर्गत टैक्स देने की जरुरत नहीं है।
नए टैक्स व्यवस्था में सीनियर सिटिज़न को आयकर की छूट समाप्त कर दी गयी है , हाँ , पुरानी टैक्स व्यवस्था में वह छूट यथावत है।
इस तरह भारत वर्ष के सभी निवासियों पर यह नई टैक्स व्यवस्था उपरोक्त रेट के साथ लागु है।
आप इनकम टैक्स के विषय अधिक जानकारी के लिए मेरे द्वारा पूर्व में लिखे हुए लेख पढ़ सकते है -
कार्पोरेट कर ( CORPORATE TAX)
यह टैक्स किसी कंपनी या निगम के शुद्ध आय पर लगाया जाता है , चाहे कंपनी देशी हो या विदेशी।
देशी कंपनी वो है जो भारत के कंपनी अधिनियम ( Companies Act ) के अंतर्गत रजिस्टर्ड हो , इन कंपनियों को इनके दुनियाँ भर के व्यवसाय से हुए कुल शुध्द आय पर कॉर्पोरेट टैक्स देना होता है।
विदेशी कंपनी वो है जो भारत के बाहर पंजीकृत है , लेकिन व्यवसाय भारत में भी करते है , उन पर भारत में होने वाले व्यवसाय के शुध्द आय पर टैक्स देना होगा।
कॉर्पोरेट टैक्स की रेट ( TAX RATE OF CORPORATE TAX)
कॉर्पोरेट टैक्स की दर कंपनी के प्रकार और कंपनी के द्वारा चुने गए टैक्स के प्रकार पर निर्भर करता है , यहाँ निचे इन पर लागू टैक्स की रेट को लिखा गया है , इन रेट्स के अतिरिक्त 4 % सेस अतिरिक्त लगता है। कंपनी के ऊपर लागू टैक्स की दर निम्न प्रकार है।
| क्रमांक | कंपनी का प्रकार और शर्त | बेस कॉर्पोरेट टैक्स दर |
|---|---|---|
| A | घरेलू कंपनी (Domestic Company) | - |
| 1 | जिसका कुल टर्नओवर (Gross Receipts) वित्तीय वर्ष 2023-2024 में ₹400 करोड़ से अधिक नहीं है। | 25% |
| 2 | कोई अन्य घरेलू कंपनी (जिसका टर्नओवर ₹400 करोड़ से अधिक है) | 30% |
| AA | रियायती दरें (Concessional Rates) | - |
| 1 | जो कंपनी आयकर अधिनियम की धारा 115BAA का विकल्प चुनती है (कुछ कटौतियों का दावा नहीं करने पर) | 22% |
| 2 | नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनी जो धारा 115BAB का विकल्प चुनती है (कुछ कटौतियों का दावा नहीं करने पर) | 15% |
| B | विदेशी कंपनी (Foreign Company) | - |
| 1 | भारत में अर्जित आय पर | 40% |
उपरोक्त के अतिरिक्त कंपनी पर लगाने वाले टैक्स के ऊपर सरचार्ज भी लगाया जाता है , जिसकी वर्त्तमान दर 10 % है , जो की धारा 115 BAA या धारा 115 BAB के अंतर्गत अपना रिटर्न भरती है , इसके अतिरिक्त इनके ( टैक्स और सरचार्ज ) दोनों के ऊपर 4 % का हेल्थ एंड एजुकेशन सेस भी लगाया जाता है।
पूंजीगत लाभ कर ( Capital Gain)
आपने अपने बचत से जो सम्पति इकठ्ठा किया है अथवा निवेश किया है, यदि आप उसको बेचते है और उस पर आप को कोई लाभ अर्जित होता है तो उस पर आपको पूंजीगत लाभ कर लगेगा। इस विषय पर पढने के लिए क्लिक कीजिए- पूंजीगत लाभ कर
प्रतिभूति लेन-देन कर (STT)
प्रतिभूति लेनदेन कर आपके द्वारा भारत के मान्यता प्राप्त एक्सचेन्जो पर खरीदी और बेचीं गई प्रतिभूतियों ( Securities ) के मूल्य पर लगाया जाता है। इस कर का संग्राहर अन्य करो से अलग होता है , यह उदगम अथवा लेन -देन करते समय ही ले लिया जाता है। यह आपके द्वारा कमाए गए लाभ पर नहीं बल्कि लेन -देन के मूल्य पर लगाया जाता है। इसे हम Securities Transaction Tax या शार्ट में STT कहाँ जाता है।
STT मुख्य रूप से उन सिक्योरिटीज पर लगता है जिसका लेन -देन भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर किया जाता है। यह निम्नलिखित प्रकार के लेन देन पर लगता है -
- इक्विटी शेयर ( Equity Share )
- डेरिवेटिव्स (Futures and Options - F&O)
- इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड्स (Equity Oriented Mutual Funds) की यूनिट्स की बिक्री (Selling of Units)
यह कर ऑफ मार्केट ट्रांसजेक्शन , कमोडिटी और कर्रंसी ट्रेडिंग पर नहीं लगाया जाता है। वर्त्तमान में लिंम्लिखित कर इसके लेन -देन पर लगाया जाता है।
| लेन-देन का प्रकार | कर की दर | कर कौन चुकाएगा | जिस मूल्य पर लगता है |
|---|---|---|---|
| इक्विटी शेयर की डिलीवरी आधारित खरीद | 0.1% | खरीदार | खरीद मूल्य |
| इक्विटी शेयर की डिलीवरी आधारित बिक्री | 0.1% | विक्रेता | बिक्री मूल्य |
| इक्विटी शेयर की नॉन-डिलीवरी बिक्री (Intraday Trade) | 0.025% | विक्रेता | बिक्री मूल्य |
| फ्यूचर्स की बिक्री | 0.02% | विक्रेता | ट्रेडिंग मूल्य |
| ऑप्शन की बिक्री (Sale of Option) | 0.1% | विक्रेता | ऑप्शन प्रीमियम |
| ऑप्शन की बिक्री (जब ऑप्शन एक्सरसाइज हो) | 0.125% | खरीदार | सेटलमेंट मूल्य |
| इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड की बिक्री | 0.001% | विक्रेता | बिक्री मूल्य |
आय कर विभाग को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है की आपको उपरोक्त के लेन देन पर फायदा हुआ है या नुकसान। यह तो लेन -देन होते ही देय हो जाता है। हाँ , यदि आपने इस कर (STT) का भुगतान किया है तब आप इसे अपने ट्रेडिंग अकाउंट में Business Expenditure के रूप में दिखा सकते है , इसका उल्लेख हमें आयकर अधिनियम की धारा 36 (1) (xv) में किया गया है , हालाँकि कैपिटल गेन के रूप में आपको यह सुविधा नहीं मिलती है।
संपत्ति कर (Property Tax)
सम्पत्ति कर अथवा प्रॉपर्टी टैक्स या हाउस टैक्स , यह एक स्थानीय कर है , जो किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाली अचल संपत्ति ( जैसे भूमि और उसपर बनी हुई ईमारत ) पर वहाँ की स्थानीय नगर निगम , नगर पालिका या ग्राम पंचायत के द्वारा वसूला जाता है।
यह कर मुख्य रूप से संपत्ति के मालिक पर लगाया जाता है , यह निम्न प्रकार की अचल संम्पत्ति पर लगाया जाता है -
- आवासीय भवन
- वाणिज्यिक भवन
- औद्योगिक भवन
- इनसे जुड़ी भूमि पर लगता है।
- खाली भूखंडों (बिना निर्माण वाले प्लॉट) पर आमतौर पर यह टैक्स नहीं लगता है, हालांकि कुछ जगहों पर खाली ज़मीन पर भी लग सकता है (जैसे राजस्थान में यूडी टैक्स)।
संपत्ति कर कितना लगाया जाता है ?
संपत्ति कर की दर और इसके लगाने का तरीका हर शहर या राज्य में भिन्न है। इसके निर्धारण के लिए निम्न कारण जिम्म्मेदार होते है।
- संपत्ति का मूल्यांकन मूल्य ( Assessed Value ) : Tax की दर और उसकी तरीका संपत्ति के निर्धारण मूल्य पर की जाती है ,
- टैक्स दर: स्थानीय प्राधिकरण द्वारा निर्धारित प्रतिशत दर।
- संपत्ति का उपयोग: आवासीय (Residential), वाणिज्यिक (Commercial) या औद्योगिक (Industrial) संपत्ति के लिए दरें अलग-अलग हो सकती हैं।
- संपत्ति का स्थान (Location) और आकार (Size)।
संपत्ति कर लगाने का तरीका -
संपत्ति कर = संपत्ति का मूल्यांकन मूल्य X टैक्स दर
टैक्स की दर वार्षिक मूल्य का 0.25% से लेकर 1.5% या उससे अधिक तक हो सकती है, जो स्थानीय नियमों पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए: यदि किसी संपत्ति का मूल्यांकन मूल्य ₹ 40,00,000 है और लागू टैक्स दर 0.5% है, तो वार्षिक संपत्ति कर होगा:
₹ 40,00,000×0.005=₹ 20,000
अप्रत्यक्ष कर ( Indirect Tax )
वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax - GST)
GST को भारत में 2017 , जुलाई माह से लागु किया गया , यह करीब 17 प्रकार के अलग - अलग टैक्स की जगह लागु किया गया था , इसको लागु करने का मुख्य उद्देश्य एक भारत - एक टैक्स था , यह वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाने वाला एक व्यापक, बहु-चरणीय, गंतव्य-आधारित उपभोग कर (Consumption Tax) है।
GST के मुख्य प्रकार:
जीएसटी को लेन-देन के प्रकार (राज्य के भीतर या अंतर-राज्यीय) के आधार पर तीन/चार घटकों में विभाजित किया गया है:
केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST - Central GST):
यह राज्य के भीतर (Intra-state) वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति पर केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है।
उदाहरण: यदि कोई डीलर दिल्ली में ही सामान बेचता है, तो केंद्र सरकार CGST लगाती है।
राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST - State GST):
यह राज्य के भीतर (Intra-state) वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति पर संबंधित राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है।
उदाहरण: यदि कोई डीलर दिल्ली में ही सामान बेचता है, तो दिल्ली सरकार SGST लगाती है।
(केंद्र शासित प्रदेशों में, इसे UTGST - Union Territory GST कहा जाता है।)
एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST - Integrated GST):
यह अंतर-राज्यीय (Inter-state) (एक राज्य से दूसरे राज्य) वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति पर केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है।
यह आयात (Imports) पर भी लगाया जाता है।
IGST, CGST और SGST का संयुक्त योग होता है।
उदाहरण: यदि कोई डीलर दिल्ली से हरियाणा में सामान बेचता है, तो IGST लागू होता है।
GST की मुख्य विशेषताएँ:
पुराने करों का समामेलन: इसने वैट (VAT), उत्पाद शुल्क (Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) जैसे अधिकांश पुराने अप्रत्यक्ष करों को बदल दिया है।
कैस्केडिंग इफ़ेक्ट (Tax-on-Tax) का खात्मा: जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit - ITC) की सुविधा मिलती है, जिससे कर पर कर लगने का प्रभाव (cascading effect) समाप्त हो जाता है।
गंतव्य-आधारित कर: यह उस स्थान पर लगाया जाता है जहाँ वस्तुओं या सेवाओं का उपभोग (Consumption) होता है, न कि जहाँ वे निर्मित होते हैं।
आप जीएसटी के सम्बन्ध में और जानकारी के लिए मेरे पूर्व में लिखे लेख भी पढ़ सकते है -
सीमा शुल्क (Customs Duty)
यह एक अप्रत्यक्ष कर है जो भारत में आयात (Imports) की जाने वाली वस्तुओं पर और कुछ मामलों में निर्यात (Exports) की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है।
आपने अभी पिछले कुछ दिनों से "TARRIF" शब्द को कई बार सुना। अमेरिका ने अपने देश में आने वाले प्रोडक्ट्स के ऊपर काफी बढे हुए रेट पर टेर्रिफ लगाया। उसी तरह भारत भी अपने देश में आयात होने वाले वस्तुओ पर आवश्यकता नुसार टेर्रिफ लगाता है।
उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और देश में माल के प्रवाह को नियंत्रित करना है।
प्रकार: इसमें मूल सीमा शुल्क (Basic Customs Duty - BCD), सामाजिक कल्याण अधिभार (Social Welfare Surcharge) और आयातित माल पर IGST आदि शामिल हैं।
संग्रह: इसे केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किया जाता है।
अन्य अप्रत्यक्ष शुल्क/कर (जो अभी भी GST के बाहर हैं)
जीएसटी लागू होने के बावजूद, कुछ वस्तुओं पर पुराने कर अभी भी लागू हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
पेट्रोलियम उत्पाद (Petroleum Products): पेट्रोलियम क्रूड, हाई-स्पीड डीजल, मोटर स्पिरिट (पेट्रोल), प्राकृतिक गैस और एविएशन टर्बाइन फ्यूल पर केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क (Excise Duty) और राज्य सरकारों द्वारा वैट (VAT) लगाया जाता है।
शराब (Alcohol for Human Consumption): मानव उपभोग के लिए शराब पर उत्पाद शुल्क (State Excise Duty) और वैट (VAT) राज्य सरकारें लगाती हैं।
स्टाम्प ड्यूटी (Stamp Duty): यह मुख्य रूप से अचल संपत्ति (Immovable Property) के हस्तांतरण/बिक्री और कानूनी दस्तावेजों पर राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है।
टोल टैक्स (Toll Tax): यह सड़कों, पुलों आदि के उपयोग के लिए लगाया जाता है।

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