दोस्तो, मैने अपने अभी तक के लेख मे अपने एकाउंटेंट भाइयो के मद्देनजर रखते हुए लेख लिखे, लेकिन मेरे पाठको मे से कई व्यवसाय से भी जुड़े हुए भाई-बहन है, जो मैनेजमेंट से सम्बंधित लेख चाहते है, यहाॅ पर मुझे यह महसूस हुआ कि जो व्यवसाय सफल है और प्रसिद्ध है, उनके बारे मे जानकारी प्राप्त कर के, उनकी कठिन समय मे अपनाये गये तरीको की जानकार कर के हम काफी-कुछ सीख सकते है, तो चलिए, सफर की शुरुआत करते है, और हमारी पहली कम्पनी है- अशोक लीलेडं
अशोक लीलेडं का इतिहास
वर्ष 1948 मे पंजाब के एक स्वतंत्रता सेनानी रघुनन्दन सरन ने दिवंगत बेटे अशोक सरन के नाम पर चेन्नई मे अशोक मोटर्स की शुरुआत की । उन्होने देश के प्रथम प्रधान मन्त्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर ब्रिटिश आस्टिन कार ( जैसे ऑस्टिन A40) की असेम्ब्लिंग शुरु की। और साथ ही वितरण का कार्य भी शुरू किया।
व्यवसाय का संचालन करते करते रघुनंदन सरन ने महसूस किया कि भारतीय बाज़ार में असली क्षमता कारों के बजाय ट्रकों और बसों में है।
1950 मे ब्रिटेन के लीलैडं से साझेदारी की, जिससे की कम्पनी का 40% स्टेक लीलेन्ड के अधिकार मे आ गया, इस साझेदारी के तहत, अशोक लेलैंड ने लेलैंड 'कॉमेट' (Comet) ट्रक और 'टाइगर कब' (Tiger Cub) हल्के बस जैसे मॉडल का निर्माण शुरू किया। 'कॉमेट' ट्रक भारतीय बाज़ार में तुरंत सफल हुआ। वर्ष 1955 मे कम्पनी का नाम - अशोक लीलैडं कर दिया गया।
वर्ष 1987 मे हिन्दुजा भाईयो ने कम्पनी की बड़ी हिस्सेदारी खरीद ली, और तभी से इस पर स्वामित्व हिंदुजा बन्धुओ का हो गया।
अशोक लीलेन्ड का विस्तार और महत्वपूर्ण मील के पत्थर (1960 से 1990)
उत्पाद विस्तार:
हिंदुजा समूह के तहत विकास (1990 से वर्तमान)
नवाचार और प्रदूषण नियंत्रण:
वैश्विक विस्तार:
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी:
पुरस्कार: इसे विनिर्माण उत्कृष्टता के लिए डेमिंग पुरस्कार भी मिल चुका है।
विदेशी स्वामित्व में बदलाव:
अशोक लीलेन्ड आज भारत ही नही पूरी दुनिया की बड़ी व्यवसायिक वाहन निर्माता कम्पनियो मे शामिल है, और यह भारत की दुसरी सबसे बड़ी कमर्शियल वाहन निर्माता कम्पनी है। कमर्शियल बसो के निर्माण मे यह दुनिया की चौथी बड़ी कम्पनी है। 50 से ज्यादा देशो से इसका व्यापार है। मार्केट कैप करीब 93 हजार करोड रुपए है। यह कम्पनी हमारे सेना के लिए भी वाहन बनाती है। इसका उत्तर प्रदेश मे ईवी प्लांट लग रहा है, जहाॅ इसकी उत्पादन झमता 5000 यूनिट की होगी।
यह तो कम्पनी के सफलता की कहानी हो गई, लेकिन ऐसा तो हो नही सकता कि कम्पनी को इतने लम्बे सफर मे कठिनाईयो का सामना ना करना पड़ हो।
अब इसके सामने पड़ने वाले कठिनाइयों के बारे में चर्चा कर लेते हैं 2013 का साल था। माइनिंग और इंफ्रा सेक्टर में मंदी का दौर चल रहा था। इससे देश की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों की बिक्री पर गहरा असर हो रहा था। इसका असर वर्तमान में देश की प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियों मे शामिल अशोक लीलैंड पर भी पड़ा। कंपनी की बिक्री करीब 42% तक गिर गई। उस पर करीब 6200 करोड रुपए का कर्ज हो गया जो उस समय कंपनी की वैल्यू से भी ज्यादा था।
लगातार हो रहे नुकसान से बचने के लिए कम्पनी को करीब 1200 कैजुअल वर्कर्स की छंटनी करनी पड़ी। कंपनी के तत्कालीन एमडी विनोद दासरी ने एक रिपोर्ट में कहा कि " यह हमारे लिए सबसे कठिन दौर था, लेकिन हमने वर्किंग कैपिटल 80% घटाकर 250 करोड़ तक ला दिया। कर्ज को आधे से ज्यादा कम किया गया।"
कंपनी की इस स्थिति में फंसने के कई कारण थे । अशोक लीलैंड ने बाजार मे तेजी के दौरान बिना पुख्ता योजनाओं के तेजी से विस्तार शुरू कर दिए, जिसके लिए भारी कर्ज लिया गया। परिस्थितियां पलटते ही दावं उल्टा पड़ गया और कंपनी कर्ज के जाल में फंसने लगी । फिर उसके बाद नीतियों में बदलाव, लागत में कटौती जैसी बुनियादी सुधारो ने उसे न केवल वापस पटरी पर लौटाया बल्कि कमर्शियल वाहनों के निर्माण में आज देश की दूसरी बड़ी कंपनी बनाया।
उस समय जब यह संकट में फंसी तो उसके मुख्य कारण निम्न थे -
1- इंफ्रास्ट्रक्चर और माइनिंग सेक्टर में मंडी -
2011 से 2014 में जीडीपी ग्रोथ घटने से इंफ्रा प्रोजेक्ट रुके। उड़ीसा, कर्नाटक ने ट्रक डिमांड 45% तक घटा दी। कंपनी की मीडियम और हेवी कमर्शियल व्हीकल की सेल्स 42% तक प्रभावित हुई.
2 - भारी कर्ज अधिक लागत
कंपनी ने विस्तार के लिए करीब 6160 करोड़ का कर्ज लिया था। 2011-14 में सेल्स गिरी , लेकिन कंपनी के फिक्स्ड खर्च बने रहे, इससे प्रति यूनिट लागत बढ़ती गई.
3 -ग्लोबल मंदी से निर्यात में गिरावट
यूरोपीय कर्ज और वैश्विक सुस्ती के चलते अशोक लीलैंड का निर्यात के लिए 80% तक गिर गया। इसके साथ ही शार्क देशो के बाजारों में भी मांग कमजोर पड़ गई।
4 -ओवर कैपेसिटी
2010 से 12 में कंपनी ने हल्के कमर्शियल वाहनों पर 2500 करोड रुपए इन्वेस्ट किया ,लेकिन कई प्लांट का केवल 40% ही उपयोग हुआ।
अब इससे वापसी कैसे हुई
पहले कर्ज घटाया बैलेंस शीट मजबूत की
2014 के बाद अशोक लीलैंड ने कर्ज को 6200 करोड रुपए से घटाकर , करीब 3000 करोड़ किया। रोजमर्रा के खर्चों को 80% तक घटाया ,जिससे मैन्युफैक्चरिंग आत्मनिर्भर बनी ।
दूसरा एलसीवी , बस और हल्के वाहनों में विस्तार
सिर्फ भारी बस, ट्रक पर निर्भरता कम करके, हल्के वाणिज्यिक वाहन (एलसीवी ) बनाएं। बसों और विभिन्न प्रकार के वाहन भी बनाने शुरू किया। लचीलापन बढ़ाया।
तीसरा ब्रांड की पुनर्स्थापना
कंपनी ने भरोसेमंद, ट्रकों और बसों की अपनी पुरानी पहचान को मजबूत किया, मांग सुस्त होने के बाद जब इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश बढ़ा तो ग्राहकों के सबसे पहले इसी ब्रांड को चुना।
चौथा इनोवेशन
2016 में कंपनी ने देश की शुरुआत की इलेक्ट्रिक बसों की और यूरो-6 ट्रक उतारे। इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर फोकस बढ़ाया। बैटरी निर्माण में 5000 करोड रुपए निवेश किया। अब वर्तमान स्थिति कंपनी ने वित्त वर्ष 2025-26 में 3383 करोड रुपए का मुनाफा कमाया है।
वर्तमान में यह कंपनी भारत में कमर्शियल वाहन के निर्माण में सेकंड नंबर पर है. वर्तमान में कंपनी का 93000 करोड रुपए से अधिक का मार्केट कैप है. कंपनी का वर्तमान में 32 प्रतिशत हिस्सेदारी है देश के मध्यम और भारी कमर्शियल व्हीकल में।
अशोक लेलैंड का विस्तृत विवरण -
कंपनी का पूरा नाम : ASHOK LEYLAND LIMITED
कंपनी का सीन नंबर ( CIN) - L34101TN1948PLC000105
कंपनी का रजिस्ट्रशन स्थल - ROC Chennai
कंपनी का इनकारपोरेशन तिथि - 07/09/1948
कंपनी का प्रकार (Category Of Company) - Company Limited By Shares
अधिकृत पूंजी ( Authorized Capital) - Rs. 35,92,10,00,000.00
प्रदत्त पूंजी -( Paid up Capital) - Rs. 5,87,38,54,552.00
कंपनी का पता ( Registered Address) - No.1, Sardar Patel Road Guindy, Chennai, Tamil Nadu - 600032


टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें